Friday, 26 August 2016
Thursday, 11 August 2016
कछुआ और खरगोश – वो कहानी जो आपने नहीं सुनी – MORAL FOR EMPLOYEE
आपने कछुए और खरगोश की कहानीज़रूर सुनी होगी,
just to remind you; short में यहाँ बता देता हूँ:
एक बार खरगोश को अपनी तेज चाल पर घमंड हो गया और वो जो मिलता
उसे रेस लगाने के लिए challenge करता रहता।
कछुए ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली।
रेस हुई। खरगोश तेजी से भागा और काफी आगे जाने पर पीछे मुड़ कर
देखा, कछुआ कहीं आता नज़र नहीं आया,
उसने मन ही मन सोचा कछुए को तो यहाँ तक आने में बहुत समय लगेगा,
चलो थोड़ी देर आराम कर लेते हैं,
और वह एक पेड़ के नीचे लेट गया। लेटे-लेटे कब उसकी आँख लग गयी
पता ही नहीं चला।
उधर कछुआ धीरे-धीरे मगर लगातार चलता रहा। बहुत देर बाद जब खरगोश
की आँख खुली तो कछुआ फिनिशिंग लाइन तक पहुँचने वाला था। खरगोश तेजी से भागा,
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कछुआ रेस जीत गया।
Moral of the story: Slow and steady wins the race. धीमा और लगातार चलने
वाला रेस जीतता है।
ये कहानी तो हम सब जानते हैं,
अब आगे की कहानी देखते हैं:
रेस हारने के बाद खरगोश निराश हो जाता है,
वो अपनी हार पर चिंतन करता है और उसे समझ आता है कि वो over-confident
होने के कारण ये रेस हार गया…उसे अपनी मंजिल तक
पहुँच कर ही रुकना चाहिए था।
अगले दिन वो फिर से कछुए को दौड़ की चुनौती देता है। कछुआ पहली
रेस जीत कर आत्मविश्वाश से भरा होता है और तुरंत मान जाता है।
रेस होती है, इस बार खरगोश बिना
रुके अंत तक दौड़ता जाता है, और कछुए को एक बहुत
बड़े अंतर से हराता है।
Moral of the story: Fast and consistent will always beat the
slow and steady. / तेज और लगातार चलने वाला धीमे और लगातार चलने वाले से
हमेशा जीत जाता है।
यानि slow and steady होना अच्छा है लेकिन
fast and consistent होना और भी अच्छा
है।
कहानी अभी बाकी है जी….

इस बार कछुआ कुछ सोच-विचार करता है और उसे ये बात समझ आती है कि
जिस तरह से अभी रेस हो रही है वो कभी-भी इसे जीत नहीं सकता।
वो एक बार फिर खरगोश को एक नयी रेस के लिए चैलेंज करता है,
पर इस बार वो रेस का रूट अपने मुताबिक रखने को कहता है। खरगोश
तैयार हो जाता है।
रेस शुरू होती है। खरगोश तेजी से तय स्थान की और भागता है,
पर उस रास्ते में एक तेज धार नदी बह रही होती है,
बेचारे खरगोश को वहीँ रुकना पड़ता है। कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ
वहां पहुँचता है, आराम से नदी पार
करता है और लक्ष्य तक पहुँच कर रेस जीत जाता है।
Moral of the story: Know your core competencies and work
accordingly to succeed. / पहले अपनी strengths
को जानो और उसके मुताबिक काम करो जीत ज़रुर मिलेगी.
कहानी अभी भी बाकी है जी …..

इतनी रेस करने के बाद अब कछुआ और खरगोश अच्छे दोस्त बन गए थे और
एक दुसरे की ताकत और कमजोरी समझने लगे थे। दोनों ने मिलकर विचार किया कि अगर हम एक
दुसरे का साथ दें तो कोई भी रेस आसानी से जीत सकते हैं।
इसलिए दोनों ने आखिरी रेस एक बार फिर से मिलकर दौड़ने का फैसला किया,
पर इस बार as a competitor नहीं बल्कि as
a team काम करने का निश्चय लिया।
दोनों स्टार्टिंग लाइन पे खड़े हो गए….get
set go…. और तुरंत ही खरगोश ने कछुए को ऊपर उठा लिया और तेजी से दौड़ने
लगा। दोनों जल्द ही नहीं के किनारे पहुँच गए। अब कछुए की बारी थी,
कछुए ने खरगोश को अपनी पीठ बैठाया और दोनों आराम से नदी पार कर
गए। अब एक बार फिर खरगोश कछुए को उठा फिनिशिंग लाइन की ओर दौड़ पड़ा और दोनों ने साथ
मिलकर रिकॉर्ड टाइम में रेस पूरी कर ली। दोनों बहुत ही खुश और संतुष्ट थे,
आज से पहले कोई रेस जीत कर उन्हें इतनी ख़ुशी नहीं मिली थी।
Moral of the story: Team Work is always better than
individual performance. / टीम वर्क हमेशा व्यक्तिगत प्रदर्शन से बेहतर होता है।
Individually चाहे आप जितने बड़े performer
हों लेकिन अकेले दम पर हर मैच नहीं जीता सकते।
अगर लगातार जीतना है तो आपको टीम में काम करना सीखना होगा,
आपको अपनी काबिलियत के आलावा दूसरों की ताकत को भी समझना होगा।
और जब जैसी situation हो, उसके हिसाब से टीम
की strengths को use करना होगा।
Saturday, 6 August 2016
Friday, 5 August 2016
Availing of Home Town LTC for other places.
Vide DoPT’s O.M. No. 31011/3/2014-Estt.(A-IV)
dated 26.09.2014, Government employees have been allowed to convert their Home
Town LTC to visit Jammu & Kashmir, North-East Region and Andaman &
Nicobar Islands under the present scheme upto 25.09.2016.
Government servants entitled to travel by air can
avail this LTC from their Headquarters to the destination. While, the
Government servants not entitled to travel by air may travel by air in Economy
class in the following sectors:
(a) Between Kolkata/Guwahati and any place in NER
(b) Between Kolkata/Chennai/Bhubaneswar and Port
Blair.
(c) Between Delhi/Amritsar and any place in
J&K.
Journey for the non-entitled employees from their
Headquarters up to Kolkata/ Guwahati/ Chennai/ Bhubaneswar/ Delhi/ Amritsar
will have to be undertaken as per their entitlement.
Reimbursement under the Leave Travel Concession
scheme does not cover incidental expenses and expenditure incurred on local
journeys.
This was stated by the Union Minister of State
(Independent Charge) Development of North-Eastern Region (DoNER), MoS PMO,
Personnel, Public Grievances & Pensions, Atomic Energy and Space, Dr.
Jitendra Singh in a written reply to a question by Shri Pramod Tiwari in the
Rajya Sabha on 04/08/16.
DA Merger Would Have Been More Beneficial Than Pay Commission.
The 7th CPC submitted its report in
November 2015. The Empowered Committee of Secretaries blocked it for 7 long
months. Finally the cabinet approved the report without any modification, The
Gazette Notification on the pay and allowances of employees was issued on
25-07-2016. The same minimum pay of Rs.18000/-. The same multiplication factor
of 2.57. Absolutely no change.
Let us now analyse what would have been the
case, had 50% of Dearness Allowance / Dearness Relief been merged with pay /
pension with effect from 01-11-2011. DA merger had taken place before
implementation of 5th and 6th CPC Recommendations. Though we had demanded it
this time also, it was not agreed to. Whether enough organizational pressure
was there to get the demand accepted is now an academic issue for discussion
only.
The DA / DR was 51% in January 2011. The
percentage rates of DA/DR were 58, 65, 72, 80, 90, 100 107, 113, 119 and 125
during subsequent six monthly periods up to January 2016. Now we shall workout
the financial implication of the 50% DA/DR merger notionally.
A person with a
basic pay / pension of Rs. 10,000/- would have got Rs. 1,06,500/- as difference
in DA/DR for the period 01-01-2011 to 31-12-2015. That is the notional loss. It
is easy to workout.
For every 1,000
rupee as pay / pension, the benefit would have been Rs. 10650/- We cannot even
dream of such an amount as pay revision “bonanza”. The pay + DA of the lowest
paid employee who was drawing Rs. 7,000/- (5,200 +1,800). On 01-01-2016 would
have been Rs. 18375/- In that case, no Pay Commission would have dared to
recommend Rs. 18000/- as minimum pay as it would have been less than the actual
pay + DA drawn by the employee.
Even if we accept the 14.29% increase
recommended by the 7th CPC, the minimum pay would have been Rs. 21,000/- and so
the multiplication factor would have increased to 3 instead of 2.57. Employees
and pensioners would have been benefited significantly. We were after the euphoria
of a Pay Commission. We thought the CPC and the Government will deliver us
good. It was a folly on our part in not clinching the demand of merger of 50%
DA with effect from 01-01-2011.
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